जैसे कि हम जानते हैं पूजा और प्रेम दो पवित्र शब्द है।जब भी हम इन दो शब्द के बारे में सोचते हैं तो हम रोमांचित हो जाते हैं और हमारा रोम-रोम आनंदित जाते हैं.और हमें शांति एवं ख़ुशी का अनुभव होता है तो क्यों ना आज इन दोनों शब्दों के बारे में बात करते हैं. एक बात बोलना यहां गलत नहीं होगा कि हम जिससे प्रेम करते हैं उन्हें ही, पूजा करते हैं. शायद इसीलिए प्रेम पुजारी जैसे शब्द का आविष्कार हुआ है। तो सबसे पहले मैं यहां प्रेम के बारे में ही लिखूंगा .
प्रेम शब्द जैसे ही हमारे मन में आता है तो सबसे पहले हमारे दिमाग में सोहनी महिवाल, हीर रांझा, लैला मजनू आदि छबि हमारे मन मेंंं उतर जाता ,. या कभी-कभी हमारे जीवन में बचपन,युवा या फिर , प्रौढ़ अवस्था में हम अगर किसी सुंदर बालिका या नारी से प्रेम करते थे या या प्रेम कर रहे थे , उसी का चेहरा सामने आ जाता है. लेकिन यहां मैं एक बात कहना चाहता हूं कि उपरोक्त, सभी पात्र सुंदर दिखते थे या है आपने कभी नहीं सुना होगा कि हमारे गांव की कोई युवक फलाना कुरूप बालिका से प्यार करता है , या करता था . मान लो कोई प्यार करता है तो मैं समझता हूं यह बहुत क्षणिक होगा. यहां दोनों पात्रों का शरीर का भूख मिटते ही यहां प्यार भी समाप्त हो जाता है . लेकिन यहां यह समझना जरूरी है कि सुंदरता का मतलब केवल शारीरिक सुंदरता नहीं है यह किसी मनुष्य का ज्ञान, धन, गुण, सामाजिक प्रतिष्ठा आदि दर्शाता है.अगर ऐसा नहीं होता तो शायद ही कोई गरीब बाप अपनी कुरूप अनपढ़ बेटी का ब्याह ना होने की कारण आत्महत्या ना करता. ना तो कोई बेटा या बेटी अविवाहित रहती .
सोचता हूं प्रेम के पीछे कहीं ना कहीं स्वार्थ की भावना छिपा होता है . इसीलिए शायद हर मां-बाप अपने बेटा या बेटी को प्रेम करते हैं की शायद वह उन का बात माने और पढ़ लिख कर गुणवान और साधु बने धन उपार्जन करें और समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति बने. यहां आप जरूर सोचते होंगे कि यहांंं मां बाप का भला क्या स्वार्थ है. लेकिन यहां सोचने योग्यय बात यह है कि गरीब मां-बाप इसलिए यह सब करते हैं ताकि बुढ़ापे में उनका पुत्र या पुत्री उनकी सेवा करें . एवं अमीर मां-बाप यही चाहते हैं कि उसका पुत्र या पुत्री उनके नाम को आगे बढ़ाएं. कोई अगर अपना पुत्र या पुत्री की भविष्य के बारे में यह जाने की वह भविष्य में उनका सेवा नहीं करेगा या उनको कष्ट देगा या उनके नाम को मिट्टी में मिला देगा तो मैं मानता हूं कोई माता पिता अपने पुत्र या पुत्री से प्रेम नहीं करता. तभी तो राजा कंस ने आकाशवाणी सुनकर अपने 8 निर्दोष भांजो की हत्या कर देता है एवं अपने स्वार्थ सिद्ध होते ही अपना बाप को कालकोठरी में डाल दिया था. अपने स्वार्थ के लिए अविवाहित माता कुंती ने अपने प्रथम पुत्रर को नदी में बहा दी। केवल यह दिखानेेे के लिए कि मैं सबसे महान दानी हूं राजा हरिश्चंद्र ने अपने पुत्र एवं सती भार्या को बीच बाजार में बेच दी थी. ऐसे कई उदाहरण इतिहास में और यह समाज में मिल जाएंगे जहां प्रेम केेेेेे पीछे स्वार्थ निहित है .
पूजा वह शब्द है जिसे सुनते ही हमारे मन में श्रद्धा- समर्पण की भावना आ जाता है. श्रद्धा हम उसी से करते हैं जो हमको कुछ दे या भविष्य या वर्तमान में हमारे लिए कुछ करें. समर्पण भावना उसी के सामने प्रकट करते हैं जिसे हम डरते हैं या डर का भावना है तभी तो हम मानव जब भी कुछ जरूरी महसूस करतेे हैं उसको पाने के लिए या फिर कोई संकट हमारे सामने आ जाए तो, हम भगवान को स्मरण करते हैं या फिर पूजा करने बैठ जाते हैं. तो यहां यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा स्वार्थ साधना एवं डर के कारण भगवान को पूजा करते हैं . इतिहास पढ़ने सेेेेे हमको मिलेगा की किसी भी देश की प्रजा वहां की भीरु एवं प्रजा विरोधी राजा की पूजा नहीं करते थे . पूजा करते थे तो कोई बलवान जैसे रावण कंस आदि राजा को डर के चाहे वह कितना भी प्रजा विरोधी हो या फिर उस भीरू राजा की जो प्रजा वत्सल हो. तभी तो कलिंग वासी अशोक के विरुद्ध अपने लहू तक दे दिए थे. फिर बलवान और प्रजा वत्सल हो तो क्या कहना जैसे भगवान राम एवं श्री कृष्णा. अतः यह निश्चित है कि भगवान के पास देने के लिए बहुत कुछ है और वह इतना ताकतवर है कि हमेंंंंंंंं कोई भी संकट से उद्धार करेगा.
हालाकी बहुत से शास्त्र में निर्विकार पूजा के बारे में बताया गयाा है. लेकिन यह अपने आप में कोई मायने नहीं रखता . जैसे कि गीता में बताया गया है कर्म ही पूजाा है क्योंकि कर्मम करने से हमारा स्वार्थ की पूर्ति होता है एवं भविष्य के बारे में हमारा डर नहीं रहता है। जैसे कि हमें बताया गया है भगवान सर्वशक्तिमान दया के सागर एवं महादानी तभी तो हम भगवान को इसलिए पूजा करते हैं ताकि वह हमा रे द्वारा किए गए सभीीी पापों माफ कर देगा एवम सभी संकट दूर कर मनचाही बर देगा। हम किसी से भगवान को प्रार्थनााा करते हुए यह नहीं सुने हैं कि मुझे कुछ नहीं चाहिए मु झे संकट की घड़ी में रक्षा करने का कोई जरूरत नहींया मुझे पापों से मुक्ति मत करना . रावण इतना धनवान एवं बलवान था कि वह जीते जीकभी भगवान को पूजा नहीं किया था । लेकिन मरते समय इसलिए राम का नाम लिया ताकि भगवान उसे सभीपापों से मुक्ति दे एवं नर्क जाने से बचाएं. तो मैं कहूंगा यह डर नहीं था तो क्या भक्ति था स्टॉप तुम्हें मानता हूं पूजा एवं प्रेम के कारण ही डर एवं स्वार्थ हैं।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हमें प्रेम और पूजा नहीं करना चाहिए . नहीं प्रेम और पूजा सबको करना चाहिए इसका सबसे बड़ा बड़ा कारण जीवन में सकारात्मकता लाने में है. मान लो हम प्रेम नहीं करेंगे तो कैसे हम हमारे समाज और देश एवं सबसे बड़ा मानव हित के लिए अच्छी काम करने के लिए प्रेरित होंगे। यह देश एवं मानव के प्रति प्रेम ही तो है जो एक सैनिक को जीवन देके भीदेश की रक्षा करने को प्रेरित होते है । तभी तो आज की समय में कोरोना के विरुद्ध डॉक्टर एवं स्वास्थ्य कर्मी अपने जीवन की पर वाह किए बिना प्रत्येक रोगी की सेवा कर पाते हैं.
दूसरी बात अगर पूजा करके हमको शक्ति मिलता है एवं वह हमारा आत्मविश्वास बढ़ाने का काम करता है तो मैं समझता हूं पूजा से बड़ा कोई काम नहीं है . हीं म ई ई


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