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जैसा कि हम जानते हैं, शांति के विपरीत शब्द युद्ध है लेकिन धर्म के दृष्टिकोण में, यह , अशांति, बेचैनी आदि हो सकती है। तो, शांति की परिभाषा विनाश से मुक्त है।
धर्म के परिप्रेक्ष्य में शांति के बारे में बताना एक व्यापक अवधारणा है लेकिन में यहाँ वह सब लिखूंगा जितना की में बिभिन्न धर्म संबधित पुस्तकें पढ़के सीखा हूँ।
सभी धर्म यह सिखाता है हमे शांति कहा से और कैसे मिलेगा। अलग-अलग धर्मो में
मार्ग अलग होते हुए भी सबका उद्देश्य एक है और वह है मन का शांति (Peace of Mind ) कई धार्मिक पुस्तकों को पढ़ते हुए, मुझे पता है कि मन की शांति आम तौर पर आनंद और खुशी के साथ मिलती है।
सामाजिक दृष्टिकोण से, शांति दुश्मनी और हिंसा के अभाव में सामाजिक मित्रता और सद्भाव की अवधारणा है। शांति प्रेम, विश्वास और क्षमा का परिणाम है जबकि युद्ध घृणा, प्रतिशोध और अभिमान का परिणाम है,

आज की दुनिया में २९ % लोग ईसाई धर्म का पालन करते हैं इसलिए सबसे पहले हम इस धर्म के बारे में चर्चा करते हैं।
बाइबिल के परिप्रेक्ष्य से, संघर्ष की अनुपस्थिति केवल शांति की शुरुआत है। सच्ची शांति में व्यक्तिगत पूर्णता, धार्मिकता, राजनीतिक न्याय और सभी सृजन के लिए समृद्धि शामिल है।
इस तरह से भगवान ने चीजों का इरादा किया जब उन्होंने अपना बगीचा, अपना स्वर्ग बनाया। "शांति मैं तुम्हारे साथ छोड़ता हूं, मेरी शांति मैं तुम्हें देता हूं, मैं तुम्हें वैसा नहीं देता जैसा दुनिया हमें देती है"। (यूहन्ना १४; २ religion) अन्य धर्मों की तरह, ईसाई धर्म भी एक दूसरे के प्रति दयालु, प्रेमपूर्ण और शांतिपूर्ण होना सिखाता है।
बाइबल में, ईसाई परंपराओं में, परमेश्वर और उसके लोगों के बीच, लोगों के बीच, और आंतरिक और बाहरी शांति के साथ शांति की गहरी चिंता है।
बाइबल में यह कहा गया है कि "एक नई आज्ञा जो मैं तुम्हें देता हूं; एक दूसरे से प्रेम करो। जैसा कि मैंने तुम्हें प्रेम किया है, इसलिए तुम्हें एक दूसरे से प्रेम करना चाहिए"।
जैसा कि हम जानते हैं कि हिंदू धर्म दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक है और आजकल दुनिया की आबादी का 14% लोग इसका पालन करते हैं। यहां गीता में, शांति का अर्थ और समाज और लोगों के लिए इसके योगदान का विस्तृत वर्णन है। यहां, हम केवल उन हिस्सों पर चर्चा करते हैं जो केवल शांति से संबंधित ह
अध्याय 2 श्लोक 64; - लेकिन आत्म-नियंत्रण वाला व्यक्ति, वस्तुओं को नियंत्रण में रखने और आकर्षण और घृणा से मुक्त होकर, शांति को प्राप्त करता है।
आगे 2 श्लोक 65 में यह वर्णन किया गया है कि जब उसे शांति मिलती है तो उसके साथ क्या होता है। शांति में उसके सारे दुःख नष्ट हो जाते हैं, शांत मन की बुद्धि होता है , और जल्द ही स्थिर प्रज्ञ हो जाती है।
अधयाय २ श्लोक ६६; - जिसके मनइन्द्रियाँ संयमित नहीं हैं ऐसे मनुष्यकी व्यवसायात्मिका बुद्धि नहीं होती। व्यवसायात्मिका बुद्धि न होनेसे उसमें कर्तव्यपरायणताकी भावना नहीं होती। ऐसी भावना न होनेसे उसको शान्ति नहीं मिलती। फिर शान्तिरहित मनुष्यको सुख कैसे मिल सकता है.
अध्याय 2 श्लोक 70; - जैसे सम्पूर्ण नदियोंका जल चारों ओरसे जलद्वारा परिपूर्ण समुद्रमें आकर मिलता है पर समुद्र अपनी मर्यादामें अचल प्रतिष्ठित रहता है। ऐसे ही सम्पूर्ण भोगपदार्थ जिस संयमी मनुष्यमें विकार उत्पन्न किये बिना ही उसको प्राप्त होते हैं वही मनुष्य परमशान्तिको प्राप्त होता है भोगोंकी कामनावाला नहीं।
अध्याय 2 श्लोक 71; - जो पुरुष सब कामनाओं को त्यागकर स्पृहारहित? ममभाव रहित और निरहंकार हुआ विचरण करता है? वह शान्ति प्राप्त करता है।।
अध्याय ४ श्लोक ३ ९; - ।जो जितेन्द्रिय तथा साधनपरायण है ऐसा श्रद्धावान् मनुष्य ज्ञानको प्राप्त होता है और ज्ञानको प्राप्त होकर वह तत्काल परम शान्तिको प्राप्त हो जाता है।
अध्याय 6 श्लोक 7; - जिसने अपनेआपपर अपनी विजय कर ली है उस शीतउष्ण (अनुकूलताप्रतिकूलता) सुखदुःख तथा मानअपमानमें प्रशान्त निर्विकार मनुष्यको परमात्मा नित्यप्राप्त हैं।
बाइबल में, ईसाई परंपराओं में, परमेश्वर और उसके लोगों के बीच, लोगों के बीच, और आंतरिक और बाहरी शांति के साथ शांति की गहरी चिंता है।
बाइबल में यह कहा गया है कि "एक नई आज्ञा जो मैं तुम्हें देता हूं; एक दूसरे से प्रेम करो। जैसा कि मैंने तुम्हें प्रेम किया है, इसलिए तुम्हें एक दूसरे से प्रेम करना चाहिए"।
जैसा कि हम जानते हैं कि हिंदू धर्म दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक है और आजकल दुनिया की आबादी का 14% लोग इसका पालन करते हैं। यहां गीता में, शांति का अर्थ और समाज और लोगों के लिए इसके योगदान का विस्तृत वर्णन है। यहां, हम केवल उन हिस्सों पर चर्चा करते हैं जो केवल शांति से संबंधित ह
अध्याय 2 श्लोक 64; - लेकिन आत्म-नियंत्रण वाला व्यक्ति, वस्तुओं को नियंत्रण में रखने और आकर्षण और घृणा से मुक्त होकर, शांति को प्राप्त करता है।आगे 2 श्लोक 65 में यह वर्णन किया गया है कि जब उसे शांति मिलती है तो उसके साथ क्या होता है। शांति में उसके सारे दुःख नष्ट हो जाते हैं, शांत मन की बुद्धि होता है , और जल्द ही स्थिर प्रज्ञ हो जाती है।
अधयाय २ श्लोक ६६; - जिसके मनइन्द्रियाँ संयमित नहीं हैं ऐसे मनुष्यकी व्यवसायात्मिका बुद्धि नहीं होती। व्यवसायात्मिका बुद्धि न होनेसे उसमें कर्तव्यपरायणताकी भावना नहीं होती। ऐसी भावना न होनेसे उसको शान्ति नहीं मिलती। फिर शान्तिरहित मनुष्यको सुख कैसे मिल सकता है.
अध्याय 2 श्लोक 70; - जैसे सम्पूर्ण नदियोंका जल चारों ओरसे जलद्वारा परिपूर्ण समुद्रमें आकर मिलता है पर समुद्र अपनी मर्यादामें अचल प्रतिष्ठित रहता है। ऐसे ही सम्पूर्ण भोगपदार्थ जिस संयमी मनुष्यमें विकार उत्पन्न किये बिना ही उसको प्राप्त होते हैं वही मनुष्य परमशान्तिको प्राप्त होता है भोगोंकी कामनावाला नहीं।
अध्याय 2 श्लोक 71; - जो पुरुष सब कामनाओं को त्यागकर स्पृहारहित? ममभाव रहित और निरहंकार हुआ विचरण करता है? वह शान्ति प्राप्त करता है।।
अध्याय ४ श्लोक ३ ९; - ।जो जितेन्द्रिय तथा साधनपरायण है ऐसा श्रद्धावान् मनुष्य ज्ञानको प्राप्त होता है और ज्ञानको प्राप्त होकर वह तत्काल परम शान्तिको प्राप्त हो जाता है।
अध्याय 6 श्लोक 7; - जिसने अपनेआपपर अपनी विजय कर ली है उस शीतउष्ण (अनुकूलताप्रतिकूलता) सुखदुःख तथा मानअपमानमें प्रशान्त निर्विकार मनुष्यको परमात्मा नित्यप्राप्त हैं।बुद्धा ने कहा कि इच्छा का विनाश , दुःख का विनाश है, उन्होंने महसूस किया कि "शांति तभी मिलेगी जब आदमी खुश होगा, सभी दुखों को समाप्त करेगा"। वह चाहता था कि " मनुष्य सभी द्वेष, घृणा, काम इच्छा में भोग, और बुरी सोच से छुटकारा पा ले,और उसके बिपरीत वह अच्छे विचार, योग्य इच्छा, परोपकार और करुणा की भावना और शांति और संयम के दृष्टिकोण अपना ले जो" .
बौद्ध धर्म के अनुशार जब हम ,हमारे मन से घृणा , लोभ, अहंकार , क्रोध, इन्द्रिय सुख आदि बितृस्ना भाव को निकाल देंगे तब हमारे मन और मस्तिष्क में शांति का वास होगा.
उसी प्रकार हमारे कर्म , जिसका फल हमारे शरीर इस जनम या अगले जन्म में भोगता है वह दया, करुणा, बुद्धि ,एवं सहानुभूति आधारित होना चाहिए.
उनके अनुशार पूर्ण शांति पाने के लिए हमें जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त रखना होगा। जन्म एबं मृत्यु के चक्र से खुद को अलग रखने के लिए ,द्वेष, हिंसा, अविद्या, तृष्णा आदि से खुद को अलग रखना होगा.
" बौद्ध धर्म में समानता या मन की शांति खुद को तृष्णा के चक्र से अलग करके प्राप्त की जाती है जो दुःख पैदा करते हैं। इसलिए एक ऐसी मानसिक स्थिति को प्राप्त करने के लिए जहां आप जीवन के सभी जुनून, जरूरतों और इच्छाओं से अलग हो सकते हैं, आप अपने आप को बिषयों से मुक्त करते हैं और पारलौकिक आनंद और कल्याण की स्थिति प्राप्त करते हैं।"

आजकल मुट्ठी भर मुस्लिम, जो आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त हैं, के कारण पूरा मुस्लिम समाज बदनाम हो जाता है। इस्लाम कट्टर और हिंसा का धर्म नहीं है, बल्कि यह शांति और क्षमा का धर्म है। कुरान में सूर्या 2 में दिखाए गए एक सामान्य विषय के रूप में शांति है; 11 v 244 जहां यह शांति बनाने की बात करता है जिसमें बुराई के खिलाफ बचाव की जरूरत है
शब्द। "इस्लाम" का अर्थ शांति के साथ-साथ "अधीनता" भी है। इसलिए इस्लाम शब्द शांति को परिभाषित करता है और इसे कैसे प्राप्त किया जाता है।
इस्लामी दृष्टिकोण शांति और ज्ञान के बारे में है और सच्चे मुस्लिम शांतिप्रिय लोग हैं।
कई धर्मों में, यह कहा गया है कि ईश्वर एक है (जो सभी लोगों के दिल में रहते हैं)। तो, जो "भगवान" की पूजा करते हैं, वे सर्वोच्च और स्थायी शांति प्राप्त करेंगे।
कुछ संस्कृति में, आंतरिक शांति को मन, चेतना की एक स्थिति माना जाता है, जिसे विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षणों जैसे प्रार्थना, ध्यान, योग आदि के द्वारा संस्कारित किया जा सकता है।
कई आध्यात्मिक अभ्यास इस शांति का उल्लेख स्वयं को जानने के अनुभव के रूप में करते हैं।
इन सब में से यह स्पस्ट है की अच्छे कर्म, दया, क्ष्यमा, एबं अहिंसा ही एकमात्र साधन है शांति प्राप्त करने के लिए।
में समझ ता हूँ, आज की दुनिया में जीने के लिए एबम चीजों का सुख जो संसार में उपलब्ध , भोगने के लिए पैसा का अत्यंत महत्व है. सो, आज की इस भौतिक संसार में पैसा के बिना शांति का कोई अर्थ नहीं है,
इसीलिए में आप से यहाँ वादा करना चाहूंगा, की आने वाला ब्लॉग में मे आप को दूंगा ऐसे बहुत सारे जानकारी -"HOW TO EARN MONEY ONLINE AND FROM HOME ".

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